दो फ़्लाइओवरों की कथा
- शहर ग़र्द
- Aug 3, 2018
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Updated: Aug 4, 2018

कुछ दिन पहले जयपुर किसी काम से मौजूद था । वहाँ अपने होटल की तरफ़ जाते समय मैंने देखा कि फ़्लाइओवर के ऊपर से एक फ़्लाइओवर जा रहा है । नीचे गाड़ी-घोड़ों का फ़्लाइओवर (अजमेर पुलिया) और ऊपर जयपुर मेट्रो का फ़्लाइओवर । इन दोनों के नीचे इन्हीं दोनों की गहरी परछाईं ।
मेरा जन्म जयपुर का है और मैंने यहाँ १० (10) साल बिताए ।
अजमेर पुलिया मेरे जीवन का पहला फ़्लाइओवर था । मुझे देख कर ही बोला "याद हूँ मैं?कितनी बार मुझे पार किया करते थे और हर बार दूसरे लोगों को नीचे झाँकते देख कर पापा को स्कूटर रोकने को कहा करते थे कि मुझे भी देखना है नीचे क्या है ?" फिर बोला कि मैं पहली फ़्लाइट, या पहली कार जैसी चीज़ों से ज़्यादा रोमांचक तो नहीं हूँ मगर कई लोग अभी भी याद किया करते हैं जब वो पहली बार मुझ पर से गुज़रे थे । अपनी निजी (private) चीज़ों से जुड़ी पहली यादें तो अक्सर याद रखते हैं मगर सार्वजनिक (public) चीज़ों से जुड़ी यादें इतना याद नहीं रहती । शायद ही किसी को याद हो कि पहला public toilet या सार्वजनिक शौचालय कब इस्तेमाल किया था । ना ही मुझे ये याद है की पहली बार मैं इस पुलिया पर कब गुज़रा था । अब इसके ऊपर एक और पुलिया है, एक और फ़्लाइओवर । हमारे होटल से दोनों फ़्लाइओवर दिखते थे । मुझे लगा कि दोनों एक दूसरे को बोल रहे हैं -तू कितना अकेला है, तेरे साथ कोई नहीं जाना चाहता । ना सड़क पर ट्रैफ़िक, ना मेट्रो में लोग ।



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